धार (तिरला). महाशिवरात्रि के साथ आदिवासी लाेकपर्व भगोरिया का आगाज हाे गया। यहां के गंगामहादेव मंदिर में मांदल व ढाेल बजाकर आदिवासी समुदाय ने पर्व की शुरुआत की। जिले के 59 स्थानाें पर 3 से 9 मार्च तक भगेरिया मनाया जाएगा। साथ ही 6 स्थानाें पर गल-चूल मेले का आयाेजन हाेगा।
तिरला से पांच किमी दूर ग्वालियर स्टेट के अंतिम गांव सुल्तानपुर व धार जिले के गांव माेहनपुरा के समीप पहाड़ी क्षेत्र के हरसिंगा टेकरी व कंदराओं से आच्छादित गंगामहादेव परिसर आदिवासी पहुंचे। यहां रंगबिरंगे लोबसों व घुंघरूओं के पट्टाें से सजे आदिवासी टोलाें ने बड़े ढाेल की थाप किलकारियां मारकर पारंपरिक नृत्य किया। प्रत्येक टाेले में करीब 30 से 40 लाेग थे। इससे पहले रंगबिरंगी पन्नियाें गाेटा किनारी से सजे 50 से 60 किलाे वजनी बड़े ढाेल लेकर आदिवासियाें गंगामहादेव व हरसंगा टेकरी के दर्शन भी किए। युवाओं ने ऊपर आकर मेला मैदान में गाेल घेरा बनाकर ढाेल की थाप पर इसके आसपास अनाेखे अंदाज में थिरके। टाेले की कंवारी बालाओं ने भी इनके साथ ताल मिलाई। ढाेल के अतिरिक्त बांसुरी व थाली की खनक भी रही। विधायक प्रताप ग्रेवाल ने ढोल वादक का स्वागत कर नकद राशि प्रदान की।
बगैर भगवान के दर्शन किए बिना काेई शराब काे हाथ नहीं लगाता
आमलिय भेरू के शंभू व सोमला अपने टाेलाें के साथ मंदिर पहुंचे। उन्होंने बताया पहले गंगामहादेव में भगवान के दर्शन कर दाे दिन की मेहनत से सजाया ढाेल बजाते हैं। इसके बाद ऊपर आकर नाचते हैं। साथ ही भगवान के दर्शन किए काेई भी शराब काे हाथ नहीं लगाता। भगवान शिव काे पहली थाप देने के बाद मेला मैदान में शराब पीते हैं। ग्राम खोकडिया माल के तोलिया अपने समूह के 30 लाेगाें के साथ ढाेल बजाने पहुंचे। उनके साथ बच्चे भी है। ताेलिया बताते है कि सब काम छाेड़कर पहले ढाेल सजाते हैं। इसके अलावा तीन दिन में बाकी तैयारियां करते हैं।
बारी-बारी से बदला जाता है ढाेल
चार से पांच घंटे की अवधि के बाद बड़े ढोल को बारी बारी से बदला जाता है। ढोल को बजाने वाला एक ही व्यक्ति होता है जो इसकी मोटी रस्सी गले मे डालकर अपनी जंघाओं पर ढोल का सारा वजन लेकर उसे अपने दोनों हाथों से बजाता है। उसके एक हाथ में बड़ी लकड़ी हाेती है और दूसरे हाथ से थाप देता है। शिवरात्रि के बाद गांव के युवाओं की टोलियां अलग अलग ग्रामों में लगने वाले हाटों में भगोरिया मनाने निकली। धुलेंडी पर गंगानगर में भगेरिया का समापन हाेगा।
पुलिस के हस्तक्षेप के बाद समाप्त हुआ नाच-गाना
दाेपहर 12 बजे से नाचगाने का क्रम शुरू हुआ। इस दाैरान आदिवासी युवक रंग-बिरंगी पगड़ी व कमर में बड़े-बड़े घुंघरूओं के बेल्ट व युवतियां पन्नियाें से सजी छतरियां लेकर थिरकी। पुलिस हस्तक्षेप के बाद नाचगाना समाप्त हुआ। क्याेंकि बताया जाता है कि एक बार नाचगाना शुरू करने के बाद यहां के मदमस्त बांके जवान रूकने का नाम नहीं लेते।